एक बहुत ही दु:खद व अविश्वसनीय घटना 28 मई 2021 का दिन समता परिवार के लिये अत्यंत दुख पहुंचाने वाला सावित हुआ, उस दिन सुबह जब लेहमन अस्पताल हरबर्ट्पुर से डॉक्टर सचिन को खबर मिली की समता परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य कुन्दन लाल सहगल का आज सुबह उपचार के दौरान देहान्त हो गया है, तो हम सभी आश्चर्य चकित रह गये, और बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ, ऐसे कैसे हो सकता है? मैं और डॉक्टर सचिन तत्काल लेहमन अस्पताल पहुंचे, तो पता चला कि कुन्दन सच में ही इस दुनिया से विदा हो चुका है।
कुन्दन लाल जी एक बहुत ही सौम्य सवभाव, कर्मनिष्ठ व मृदु भाषी व्यक्ति थे,वे विगत 34 वर्षो से समता परिवार के अभिन्न अंग के रूप में कार्य करते रहे,समता का सम्पूर्ण लेखा-जोखा व हिसाब किताब का कार्य बहुत ही सुचारू तरिके से1995 से लेकर अंतकाल तक सम्भाले रहे। कुन्दन की गणित पर अच्छी पकड थी,उन्होने कक्षा 12 तक की पढाई विज्ञान वर्ग से रा.इ.कालेज त्युनी से संस्थागत की थी। समता के जब जौंनसार बावर व उत्तरकाशी के नौगांव व पुरोला क्षेत्र में सैकडो प्राथमिक विध्यालय चल रहे थे तो उस समय समता अपने शिक्षको के लिए हर वर्ष 10 दिवसीय उपचारात्मक शिक्षा प्रशिक्षण शिविर आयोजित करती थी। उन शिविरो में शिक्षको को गणित पढाने की जिम्मेदारी कुन्दन सम्भालते थे। मैं और कुन्दन 1992-93 में चकराता स्नोव्यू बंगले वाले ऑफिस में एकाउंट का काम रुबेन जी व मैगी दीदी से साथ साथ सीखते थे, उन दिनो कम्प्युटर नही थे इस लिये ऑफिस में सारे काम पेन कागज से ही निपटाये जाते थे, कुन्दन का हाथ लिखने में तेज चलता था जिस वजह से वह मेरे हिस्से का काम भी पूरा कर दिया करता था। हम दोनो के परिवार उन दिनो हैड पोस्ट ऑफिस के पास वाले कमरो में रहते थे,वही से सुबह नौ बजे टौंस डिविजन ऑफिस जाते और फिर एक बजे से दो बजे तक लंच अवकाश पर रहते, और फिर दो बजे से पांच बजे तक ऑफिस में काम करते थे। यही हर दिन की दिनचर्या रहती थी। 1994 में समता का ऑफिस समता निकेतन जाखाधार शिफ्ट हो गया, रुबेन सर, मैगी दीदी जाखाधार में रहने लगे, मैं और कुन्दन रोज् चकराता से पैदल जाखाधार ऑफिस जाते थे, उन दिनो लाखामण्डल रोड पर केवल एक बस चलती थी देहरादून गोराघाटी,बाकि कोई भी आने जाने की सुविधा नहीं थी। दो ढाई महिने तक हम दोनो चकराता से ही ऑफिस आते थे, लेकिन हमेशा इतनी दूर ऑफिस के लिये आना और फिर पांच बजे छुट्टी के बाद वापिस चकराता जाने में बहुत थकान हो जाती थी। कुन्दन का बडा बेटा विजय एस.एफ.एफ स्कूल में पढ रहा था और मेरी बडी बेटी अंकिता भी क़े.एल. शिशु भारती में नर्सरी क्लास में पढ रही थी, जाखाधार में उन दिनो स्कूल की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसी वजह से हम अपने परिवारो को चकराता में ही रखे हुए थे। जुलाई 1994 में हम दोनो ने क्वांसी में किराये के कमरे लिये और दोनो परिवारो को क्वांसी ले कर आये थे। तब कुन्दन ने श्याम सिंह चौहान से मोटर साइकिल लेने की बात की थी, लेकिन पैसे नहीं बन पाये थे, मैंने कुन्दन से कहा कि तुम मोटर साइकिल तो नहीं लाये, अब ऑफिस आना जाना कैसे होगा। कुन्दन ने कहा गाडी तो मिली हुई है लेकिन उन्हे 30 हजार रुपये कैश देने हैं जो मेरे पास नहीं है, अगर आप 15 हजार रुपये देते हैं तो मैं कल ही ले कर आता हूँ। दो दिन बाद मैंने कुन्दन को पैसे दिये और वह पुरोला से येज़दी मोटरसाइकिल ले कर आ गया। फिर तो हम दोनो मोटर साइकिल से रोज ऑफिस आते थे। उन दिनो कुन्दन सोलर लाइट, टी.वी. रेडियो आदि ठीक करने का भी काम करता था, एक दिन उसने मोटर साइकिल में रेडियो फीट किया, जो दिखाई नही देता था, सुबह हम जब जाखाधार ऑफिस के लिये चले तो रेडियो में विविध भारती चैनल पर गाने बजने लेगे, मेरे समझ में नहीं आया कि ये गाने कहाँ बज रहे हैं, दो तीन मिनट चलने के बाद मैंने कुन्दन से कहा, आप गाना सुन रहे हो, ये कहाँ बज रहा हैं? वह कहने लगा बस आप गाना सुनो ये कहाँ बज रहा हैं ये छोडो, आप के समझ में नहीं आयेगा। फिर मैं चुप रहा क्योंकि कुन्दन भी बिल्कुल नया नया ड्राइवर था, इस लिए मैं चुप चाप गाने सुनता रहा और कुछ समय में ही हम जाखाधार पहुंच गये। फिर तो रोज आते जाते गाने शुरु हो जाते थे। फिर एक दिन मैंने कुन्दन से कहा क्या हम मोटर साइकिल से रेडियो हटा कर उस जगह ऑडियो प्लेयर को लगा सकते हैं? कुन्दन ने कहा हाँ, लगा कर देखते हैं। कुछ ही दिनो में मोटर साइकिल में ऑडियो प्लेयर लग गया। फिर तो हम मन पसंद के गाने सुनने लगे। एक दिन सुबह हम क्वांसी से मजे से गाने सुनते हुए जब जाखाधार पहुंचने ही वाले थे तो अचानक मोटर साइकिल के टायर के नीचे एक गोल पत्थर आ गया जिससे मोटर साइकिल उच्छ्ल कर रोड से बाहर निकल गई,और नीचे किलगोड की झाडियो में उल्टी लटक गई,हम दोनो भी मोटर साइकिल के साथ ही झाडियो में थे बहुत सारे किलगोड के कांटे दोनो के शरीर में चुभे थे, लेकिन क्या करते दूर दूर तक कोई भी गाडी या आदमी नहीं दीख रहा था। मदद मिलने की कोई आस नहीं थी,फिर हिम्मत करके मैं झाडी से बाहर निकला और फिर कुन्दन को निकाला। शरीर से कांटे बीने,और फिर मोटर साइकिल को घसीट घसीट कर रोड तक ले कर आये, प्रभु की कृपा से मोटर साइकिल जल्दी स्टार्ट हो गई और जाखाधार पहुंच गये। समय भी ज्यादा हो गया था और डर भी लग रहा था कि आज तो रुबेन सर बहुत डांटेंगे, इस लिये चुप चाप ऑफिस में जा कर काम में जुट गये। लेकिन सर को घटना का पता नहीं लगा इस लिये डांट से बच गये।
कुन्दन की कद काठी बच्चे जैसी थी, जब भी कोई ऐसी वैसी बात होती थी तो उस के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान और रौनक छाई रहती थी। बात1987 की हैं हमारी छ: लोगो की टीम एक महा के संचार प्रशिक्षण के लिए तिलोनिया (अजमेर)गई हुई थी, कुन्दन हम सभी में सबसे छोटे थे, वहाँ रेलवे स्टेशन के पास उन दिनो साइकिले किराय में चलाने को मिलती थी। हम सभी ने योजना बनाई कि शाम के समय छुटटी के बाद साइकिले किराय में ले कर सीखेंगे। उसी दिन एक घंटे के लिये तीन साइकिले किराय पर ली, और निकल पडे साइकिल सीखने, हम लोगो में तीन को साइकिल चलानी आती थी, उन में से एक कुन्दन भी था। यानि तीन लोग तीन को सीखाएंगे। कुन्दन के साथ मुझे बैठना था, क्योंकि मेरा कद लम्बा था, जब सीखाने का वक्त आया तो कुन्दन ने मुझ से कहा आप साइकिल पकड कर रखना जब मैं बैठ जाउंगा आप तब ही बैठना, मैंने साइकिल पकडी जैसे ही कुन्दन ने ऊपर बैठने का प्रयास किया कि साइकिल आगे भागती हुई लुडक गई, कुन्दन पीछे छुट गया और मैंने दौड कर साइकिल को उठाया। सभी लोग दूर निकल गये थे, तीन चार बार प्रयास किया लेकिन वह साइकिल पर नहीं बैठ पाया, फिर मुझे लगा कि पहले मैं बैठ कर साइकिल को जोर से पकड कर रखता हूँ फिर कुंदन बैठेगा। लेकिन ये तरकिब भी काम नहीं आई, आखिर मैंने एक आंगन के पिलर के सहारे कुंदन को उठा कर साइकिल पर बैठाया और पीछे कैरियर पर मैं बैठ गया, फिर तो साइकिल बडे मजे से चल पडी। कुन्दन साइकिल को तेज भगाने लगा, थोडी दूर चले ही थे कि आगे से ट्रेक्टर आते दिखा, कुंदन ने ब्रेक लगाये तो हम दोनो साइकिल के साथ ही उच्छ्ल कर गिर पडे, फिर उठ कर साइकिल को खडा कर तो लिया लेकिन कुंदन को साइकिल पर कैसे बैठाऊ,मैं सोच में पड गया,मैंने साइकिल को स्टैंड पर खडा किया और कुंदन को पहले बैठाया फिर मैं बैठा, मैंने बैठ कर साइकिल को जोर से झटका दिया तो साइकिल स्टैंड से उतर कर तेजी से भागी और रोड से बाहर चली गई,धीरे धीरे कुंदन ने साइकिल को काबू में ला कर रोड पर लाया। उतने में साथ वाले लोग भी वापिस लौट आये थे, फिर सभी लोग तिलोनिया आ गये थे। कुछ ही दिनो में हम सभी लोग अलग अलग साइकिल ले कर चलाने लगे। लेकिन कुंदन फिर भी अकेले साइकिल पर नहीं बैठ पाता था, कद छोटा होने की वजह से उसके पैर अच्छी तरह से साइकिल के पैडिल तक भी मुश्किल से पहुंच पाते थे। वह जब भी ब्रेक का उपयोग करता तो साइकिल गिर जाती थी, इस लिये ब्रेक ही नहीं लगाता था। बात सन- 1991-92 की है कुन्दन और शशि शर्मा एस.डब्लू.आर.सी. तिलोनिया में नैशनल ड्रिंकिंग वाटर मिशन कार्यक्रम के तहत जल परीक्षण का प्रशिक्षण ले रहे थे, उस दौरान तिलोनिया में वेल्स के राजकुमार प्रिंस चार्ल्स व उन तत्कालिन धर्म पत्नी डायना भी तिलोनिया आये हुये थे, उन दोनो से कुंदन व शशि ने करीब से मुलाकात की थी, यह कुंदन व शशि शर्मा के लिये एक यादगार क्षण था, ये दोनो लोग जब प्रशिक्षण पूरा कर के वापिस चकराता लौटे तो इन दोनो ने जौनसार बावर,पछ्वादून व उत्तरकाशी के सैकडो गांवो में पीने के पानी का परीक्षण किया।इस के अतिरिक्त समता के कार्य क्षेत्र में कुन्दन लाल टीकमसिंह रावत व शशि शर्मा ने सैकडो गांवो में बच्चो व गर्भवती महिलाओ का टीकाकरण(Vaccination) किया। यह वह वक्त था जब पहाडी क्षेत्रो में प्रतिरक्षण (Immunization) की सुविधा नहीं ने बराबर थी। कुन्दन ने समता परिवार में रहते हुये अनेक सरहनीय कार्य किये, जिन्हे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
स्वभाव से ही कुंदन में कुछ अच्छे गुण थे, जैसे किसी काम को करने में जल्दबाजी न करना, सोच विचार कर किसी को सुझाव देना, कभी भी किसी से उलझना नहीं, और किसी भी काम को करना असम्भव नहीं मानता था। वह यही कहता सुनाई देता था कि हाँ जी हो जायेगा। इसी के साथ कुंदन एक अछा टैक्निशियन भी था, वह सोलर, डी.सी,/ ए.सी.वाली खराब वस्तुओ को बखुबी ठीक कर लेता था। अन्य भी कई प्रकार के तकनिकी कार्य वह आसानी से निपटा देता था। एस.डब्लू.आर.सी.(Bare Foot College) तिलोनिया (अजमेर) से कुन्दन ने समय समय पर बहुत सारे प्रशिक्षण प्राप्त किये थे, जैसे, सौर ऊर्जा, संचार, जल परीक्षण, स्कूल स्वास्थ्य परीक्षण व टीकाकरण, एकाउन्ट प्रबंधन आदि। इस लिये उन को अनेक कार्यो में दक्षता हासिल थी। समता में कार्य करने के साथ साथ उन्होने अपनी पढाई भी जारी रखी। वह समता में इन्टर पास कर के आये थे, तथा समता में कार्य करते हुए उन्होने शिक्षा शास्त्र व समाज शास्त्र से बी. ए. पास किया, तथा 1993 में समाज शास्त्र से एम. ए. की डिग्री हासिल की थी।
समता में रहते हुए कुन्दन ने बहुत सी अहम जिम्मेदारिया निभाई, 1986 में कुंदन समता परिवार का हिस्सा बना। समता से प्रशिक्षण लेने के पश्चात कुंदन को चकराता के खनाड गांव में प्रा. शिक्षक के रूप में पहली नियुक्ति दी गयी, वहाँ पर कुंदन ने बडे मेहनत व लगन से सराहनीय कार्य किया। एक वर्ष बाद समता ने कुंदन को ग्राम गहरी में प्रा.स्कूल प्रारम्भ करने की जिम्मेदारी दी, वहाँ भी उन का कार्य सराहनीय रहा।1989 में समता ने उन्हे क्वांसी क्षेत्र में सर्कल सुपरवाइजर के पद पर नियुक्त किया, फिर 1992 में उन्हे समता ने मेरे साथ सहायक विकास समन्वयक पद पर नियुक्त किया। मेरे साथ भी उन्होने बडे लगन व मेहनत से कार्य किया। फिर 1996 में समता ने कुन्दन को मुख्यालय में एकाउंटैन्ट के पद पर नियुक्त किया, और जीवन पर्यन्त तक समता के एकाउंटैन्ट का कार्य बखुबी बडे मेहनत और ईमानदारी से सम्भाले रखा।
द्वारा - सुल्तान
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